रामसेतु (Ramsetu)पुल कहां है? रामसेतु (Ramsetu) के बारे में जानकारी. रामसेतु (Ramsetu) का रहस्य क्या है? क्यों मसहुर है रामसेतु (Ramsetu)? क्या है इतिहास?

artical / लेख : क्या भारत का सबसे पुराना रामसेतु दुबारा बनाया जा रहा है (Is India’s oldest Ram Setu being rebuilt?)

रामसेतु (Ramsetu) क्या है? What is Ram Setu?
रामसेतु (Ramsetu) के बारे में इतिहास में बात की जाए तो यह एक ऐसा पुल के बारे में बनाया गया था जहा भगवान श्री राम और उनकी सेना सभी वानर सेना और उनके अन्य सभी दल के द्वारा निर्मित किया गया था. या सेतु श्रीलंका (जो पहले लंका कहलाता था) पर रावण से युद्ध करने के लिए बनाया गया था इस पुल की खास बात यह थी कि यह केवल पत्थरों के द्वारा निर्मित किया गया था और इसकी वास्तविकता इस चीज से देखि जा सकती है कि उन पत्थरों पर जिसने भी उस समय भगवान श्री राम का नाम लिखा तो वह पत्थर तैरने लगता था और इस प्रकार सभी वनरो और अन्य व्यक्तियों के कठिन परिश्रम के द्वारा यह कम से कम लम्बाई 30 किलोमीटर और चौड़ाई 3 किलोमीटर का पुल तैयार किया गया था रामसेतु (Ramsetu) के बारे में तो यहां तक भी कहा गया है कि यह एक यूरेनियम का बहुत ही बड़ा भंडार है जो आगे आने वाले समय में उर्जा के संकट को बहुत या फिर कहो कई सालों तक कम कर सकता है और यह एकमात्र ऐसा एक चिन है जो चाइना की दीवार के बाद अंतरिक्ष से दिखाई देती है इससे इसकी विशालता के बारे में आप जान सकते हैं क्योंकि यह सीधी सीधी अंतरिक्ष से खींची हुई एक रेखा की भांति दिखाई देती है.

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क्यों मसहुर है रामसेतु (Ramsetu)? क्या है इतिहास? Famous is Ram Setu? What is history?
हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार जब असुर सम्राट रावण माता सीता का हरण कर उन्हें लंका ले गया था तब भगवान श्रीराम ने वानरों की सहायता से समुद्र के बीचो-बीच एक पुल का निर्माण किया था. इस पुल को ‘रामसेतु (Ramsetu)’ नाम दिगा गया. इसी रामसेतु पुल से श्रीराम की पूरी वानर सेना गुजरी और लंका पर विजय हासिल की. यह इसका इतिहास है जो विश्व भर में प्रचलित है और यह एक ऐसी भी प्रत्यक्ष उदाहरण है कि पुराने जमाने में भगवान श्रीराम का एक वास्तविक रूप था क्योंकि उसमें दर्शाई जाने वाली सभी चीजें और वस्तुएं आज भी भारत में उपलब्ध हैं और यह एक सत्य जैसा ही है या फिर कहे सत्य ही है. आज के युग में इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ‘एडम्स ब्रिज’ के नाम से भी जाना जाता है.

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रामसेतु (Ramsetu) का क्या है ऐतिहासिक मान्यता? What is historical belief?
धार्मिक इतिहास पर गौर करें तो मान्यता है कि भगवान राम ने माता सीता को लाने के लिए बीच रास्ते आने वाले इस समुद्र को अपने तीर से सूखा कर देने का सोचा लेकिन तभी समुद्र से आवाज आई. समुद्र देवता बोले, “हे प्रभु, आप अपनी वानर सेना की मदद से मेरे ऊपर पत्थरों का एक पुल बनाएं. मैं इन सभी पत्थरों का वजन सम्भाल लूंगा.” इसके बाद पूरे वानर सेना तरह-तरह के पत्ते, झाड़ तथा पत्थर एकत्रित करने लगी. पत्थरों को एक कतार में किस तरह से रखकर एक मजबूत पुल बनाया जाए इस पर ढेरों योजनाएं भी बनाई गईं. ऐतिहासिक मान्यताओं के अनुसार रामसेतु पुल को 1 करोड़ वानरों द्वारा केवल 5 दिन में तैयार किया गया था. लेकिन इस पुल पर रखे पत्थर और उनका बिना किसी वैज्ञानिक रूप से जुड़ना आज तक हर किसी के जहन का सवाल बना हुआ है.

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क्या यह सच है कि साल्ट लेक पर पुल बनाने का आइडिया लेने के लिए एक इंजीनियर राम सेतु जाता है? Is it true that an engineer goes to Ram Setu to get the idea of building a bridge over Salt Lake?
मोदी (Modi) सरकार के आने के बाद रामसेतु (Ramsetu) एक धरोहर की तरह ही हो गया है और मोदी सरकार इस के कायाकल्प के लिए बहुत ही ज्यादा मेहनत कर रही है जिसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि अब आपको रामसेतु के नजदीक तक यानि रामेश्वरम तक ट्रेन का स्टेशन देखने को मिल जाएगा यह रामसेतु जो कि एक 20 किलोमीटर लंबा है इसकी कायाकल्प की एक तस्वीर नीचे देख सकते हैं जिसमें मोदी सरकार के द्वारा इस धरोहर को सुरक्षित रखने का पूर्ण तरीके से प्रयास किया गया है और यह काफी हद तक सफल भी हुआ है. ऐसा भी कहा जा रहा है कोलकाता के साल्ट लेक पर पुल बनाने के लिए इस सेतु से आइडिया लिया जा रहा है!

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तो ये है रामसेतु में प्रयोग किये गए पत्थरों का वैज्ञानिक पहलू So this is the scientific aspect of the stones used in Ram Setu.
ऐसा कई बार होता है जब हम किसी विषय या वस्तु पर तब तक यकीन नहीं करते, जब तक उसे अपनी आंखों से देख ना लें. धर्म-अध्यात्म से जुड़ी कुछ बातें भी इसी तरह की हैं. माता सीता को लंका से लाने के लिए श्रीराम की वानर सेना द्वारा बनाया गया ‘राम सेतु’ क्या सच में कभी बनाया गया था या नहीं, यह हिन्दू धर्म मानने वालों के लिए एक अहम प्रश्न है. ना केवल धार्मिक इतिहास बल्कि विज्ञान द्वारा भी इस प्रश्न का हल निकालने का पूरा प्रयास किया गया है. विज्ञान की दिशा से देखें तो ‘प्यूमाइस’ नाम का एक पत्थर होता है. यह पत्थर देखने में काफी मजबूत लगता है लेकिन फिर भी यह पानी में पूरी तरह से डूबता नहीं है, बल्कि उसकी सतह पर तैरता रहता है. कहते हैं यह पत्थर ज्वालामुखी के लावा से आकार लेते हुए अपने आप बनता है. ज्वालामुखी से बाहर आता हुआ लावा जब वातावरण से मिलता है तो उसके साथ ठंडी या उससे कम तापमान की हवा मिल जाती है. यह गर्म और ठंडे का मिलाप ही इस पत्थर में कई तरह से छेद कर देता है, जो अंत में इसे एक स्पॉंजी जिसे हम आम भाषा में खंखरा कहते हैं, इस प्रकार का आकार देता है.

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रामसेतु की अभी क्या हालत है? What is the condition of Ram Setu now?
प्यूमाइस पत्थर के छेदों में हवा भरी रहती है जो इसे पानी से हल्का बनाती है, जिस कारण यह डूबता नहीं है. लेकिन जैसे ही धीरे-धीरे इन छिद्रों में पानी भरता है तो यह पत्थर भी पानी में डूबना शुरू हो जाता है. शायद यही कारण है रामसेतु पुल के डूबने का. नैशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस, नासा द्वारा रामसेतु की सैटलाइट से काफी तस्वीरें ली गई हैं. नासा का यह भी मानना है कि भारत के रामेश्वर से होकर श्रीलंका के मन्नार द्वीप तक एक पुल आवश्य बनाया गया था, लेकिन कुछ मील की दूरी के बाद इसके पत्थर डूब गए, लेकिन हो सकता है कि वे आज भी समुद्र के निचले भाग पर मौजूद हों.

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रामसेतु कहां बना? Where was Ram Setu built?
राम की वानर सेना द्वारा बनाया गया रामसेतु पुल आज के समय में भारत के दक्षिण पूर्वी तट के किनारे रामेश्वरम द्वीप तथा श्रीलंका के उत्तर पश्चिमी तट पर मन्नार द्वीप के मध्य चूना पत्थर से बनी एक श्रृंखला है. यदि वैज्ञानिकों की मानें, तो कहा जाता है कि एक समय था जब यह पुल भारत तथा श्रीलंका को भू-मार्ग से आपस में जोड़ता था. कहा जाता है कि निर्माण करने के बाद इस पुल की लम्बाई 30 किलोमीटर और चौड़ाई 3 किलोमीटर थी. आज के समय में भारत तथा श्रीलंका के इस भाग का पानी इतना गहरा है कि यहां यातायात साधन बिलकुल बंद है, लेकिन फिर भी उस समय भगवान राम ने इस स्थान पर एक पुल बनाया था.

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रामसेतु पर शुरू होगी रिसर्च Research will start on Ram Setu
‘राम सेतु’ की उम्र का पता लगाने के लिए एक अंडरवाटर रिसर्च प्रॉजेक्‍ट हो रही है। पत्‍थरों की यह श्रृंखला ‘कैसे’ बनी, इसपर CSIR-नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ ओशनोग्रफी (NIO) के वैज्ञानिक रिसर्च करेंगे। ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) के मातहत सेंट्रल एडवायजरी बोर्ड ने NIO के प्रस्‍ताव को मंजूरी दे दी है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अत्‍याधुनिक तकनीक से उन्‍हें पुल की उम्र और रामायण काल का पता लगाने में मदद मिलेगी।

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